चिराग तले अंधेरा
" मास्टर जी! बात क्या हुई है मुझे भी तो बताइए? जब से स्कूल से आए है तब से गंगा - यमुना बहाए ही जा रहे है? अब आपको इस अवस्था में देखकर मुझे घबराहट सी होने लगी है और यह बात पीछा ही नही छोड़ रही है कि कोई बात ऐसी जरूर है जिसके कारण आप की ऐसी हालत हो रही है?" सुनंदा ने अपनी पनीली ऑंखों से देखते हुए अपने पति पुष्कर से पूछा।
" काहे का मास्टर! मैं कोई मास्टर नही। मैं तो एक ऐसे बेटे का .....।"
पुष्कर की अपनी पत्नी से कहने के लिए शुरू की गई बात खत्म होती उससे पहले ही पुष्कर चुप हो गया।
" मास्टर नही है? ये कैसी बात कर रहे है आप? आज तक इसी पहचान के साथ तो हम सब जी रहे है, इस गांव के हाई स्कूल के मास्टर होने के साथ-साथ आप एक प्रतिष्ठित व्यक्ति भी माने जाते है। मुझे तो आप पर उस वक्त गर्व होता है जब मुझसे गाॅंव के स्त्री और पुरुष आपकी तारीफ करते हुए ये कहते हैं कि हमारे गाॅंव के बच्चे के सही राह पर जाने में पुष्कर मास्टर साहब का बहुत बड़ा योगदान है। वो तो यहां तक कहते है कि हम उनके गांव के नही है फिर भी हम उनके अपनों से कम भी नहीं है। आज से ५ साल पहले जब हम इस गांव में आए थे तब मुझे लगता था कि यहां पर हम कैसे रहेंगे लेकिन यहां आने के बाद गांव वालों के प्यार और अपनापन ने आज तक यह एहसास ही नही होने दिया कि हम इस गाॅंव के नही हैं। इतना तो अपनापन प्यार और इज्जत गाॅंव वालों ने हमें दिया है फिर आज आप कैसे कह रहे कि आप मास्टर नही है। इन बातों में तो मैं भूल ही गई कि आज आप हमारे बेटे रोहित से मिलने शहर गए थे। कैसा है हमारा बेटा ?"
अपनी पत्नी सुनंदा की बातें चुपचाप सुन रहे पुष्कर ने जब यह सुना कि "कैसा है हमारा बेटा?" उसके चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान आ गई और उसने सिर्फ इतना ही कहा कि जहां उसे होना चाहिए वहीं पर आज उसे देख कर आ रहा हूॅं।
" यूं गोल-गोल मास्टरों वाली बातें करना बंद करे और मुझे सीधे-सीधे सिर्फ यह बता दे कि मेरा बेटा ठीक तो है ना?" सुनंदा ने अपनी ऑंखों को नचाते हुए कहा।
"अभी तक तो ठीक था लेकिन कब तक ठीक रहेगा यह मैं नहीं कह सकता क्योंकि उसने ऐसा गुनाह ही किया है कि अब उसकी जिंदगी बदतर होने वाली है।" पुष्कर ने कहा।
सुनंदा अपने पति पुष्कर से कुछ और पूछती उससे पहले ही दरवाजे पर जोर-जोर से दस्तक होने लगी और ना चाहते हुए भी उसे दरवाजे की तरफ जाना पड़ा।
" भाभी जी! पुष्कर मास्टर साहब ठीक तो है ना?" गांव के अभी कुछ दिन पहले ही युवा मुखिया बने श्रीधर ने पूछा।
" जी नही भाई साहब! वह ठीक तो नहीं है। वह जब से शहर से आए हैं रोए ही जा रहे है। मेरी बातों का भी गोल- गोल जवाब दे रहे है।" सुनंदा ने कहा।
मुखिया श्रीधर के साथ-साथ गाॅंव के और भी लोग घर के अंदर दाखिल हो गए। सभी पुष्कर के इर्द - गिर्द रखी कुर्सियों और चौकी ( लंबी - चौड़ी सी बैठने और सोने के लिए बनी लकड़ी का सामान) पर बैठ गए।
गाॅंव के लोगों के बैठने के बाद सुनंदा आंगन से अपनी रसोई की तरफ चली गई और जब बाहर निकली तो उसके हाथ में एक बड़ा सा ट्रे था जिसमें सभी के लिए पानी था।
"मास्टर साहब! इस दुःख की घड़ी में हम आपके साथ है और मैं मान ही नही सकता कि आपका बेटा ऐसा कर सकता है? जरूर किसी ने उसे फंसाया है। किसी अपने को बचाने के लिए किसी और का गुनाह हमारे भोले रोहित पर डाल दिया गया है। हम सब लड़ेंगे। पूरा गाॅंव आपके साथ है मास्टर साहब। आप बिल्कुल भी चिंता ना करे, सब ठीक हो जाएगा।" मुखिया श्रीधर ने पुष्कर के कंधे पर अपना हाथ रखकर कहा।
" जब से अध्ययन की समझ आई तभी से मैंने यह निर्णय ले लिया था कि मुझे अध्यापन क्षेत्र में ही जाना है। हम सभी जानते हैं कि किसी देश की प्रगति में शिक्षा का बहुत बड़ा महत्व होता है। शिक्षा के क्षेत्र में मेरे अब तक के अनुभव यही कहते थे कि एक शिक्षक ही मनुष्य रूपी इमारत की नींव तैयार करने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। नींव को हम जिस सांचे में ढा़लेंगे उसी सांचे में वह इमारत खड़ी होगी लेकिन आज मैं कहता हूॅं कि ऐसा बिल्कुल भी नही है क्योंकि लोगों को ज्ञान बांटने वाला यह शिक्षक खुद ही अपने बेटे को पढ़ाने में अनपढ़ रह गया। जब मैं अपने ही बेटे को ऐसा संस्कार नही दे सका जो उसे बेहतर भविष्य प्रदान कर" सके, तो मेरे विद्यालय में आने वाले और विद्यार्थियों को क्या दे पाया और आगे भी दे पाऊंगा? सारी गलती मेरी ही है। मैं ही अपने बेटे को अच्छे और बुरे की पहचान नहीं करा सका यहाॅं तक कि लड़की और महिलाओं की इज्जत करना भी नही सीखा पाया तभी तो उसने वह गुनाह किया जिसे कहते हुए भी मुझे शर्म आ रही है, उसे किसी ने नहीं फंसाया है। इंसान को पहचानने वाली मेरी आंखें कभी धोखा नहीं खा सकती कि वह झूठ बोल रहा है या सच। मेरे सामने वह ऑंख तक नहीं उठा पा रहा था, उसकी झुकी ऑंखों में ही मुझे उसका गुनाह महसूस हो गया है।" कहते हुए पुष्कर फूट - फूटकर रोने लगा।
पुष्कर की बातें सुनकर वहाॅं पर मौजूद गाॅंव वालों में कानाफूसी होने लगी। पुष्कर मास्टर साहब के व्यक्तित्व और उसके बेटे की करतूत भरी बातों को करते हुए सभी लोगों की जुबान पर जो बातें बार-बार आ रही थी वह यह था कि 'चिराग तले अंधेरा'।
जो गाॅंव वाले बोल रहे थे वह सच भी था क्योंकि पुष्कर मास्टर साहब के साथ - साथ सुनंदा को भी इस बात का एहसास हो रहा था कि आज अपने जीवन में जो वह दिन देख रहे थे वह 'चिराग तले अंधेरे' से कम नही। कुछ दिन पहले तक यदि सुनंदा को अपने बेटे के बारे में यह बातें पता चलती तो वह यकीन नहीं करती लेकिन आज वह यकीन कर रही थी क्योंकि इस बार जब उसका बेटा अपने काॅलेज की छुट्टी में घर आया था, एक माॅं की ऑंखों ने वह सब देख लिया था और समझ लिया था कि उनका बेटा गलत संगत में पड़ गया है। घर की शांति खराब ना हो इसलिए उसने यह बात अपने पति से भी नही कही। आज वह मन ही मन यही सोच रही थी कि काश! उसने अपने पति को यह बात बता दी होती तो शायद! आज उन सबके जीवन में यह दिन देखना ना पड़ता।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💗 💞 💗
# मुहावरों की दुनिया
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
01-Feb-2023 04:35 PM
बेहतरीन
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Pranali shrivastava
31-Jan-2023 07:13 PM
V nice 👍🏼
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Rajeev kumar jha
23-Jan-2023 04:51 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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